पहाड़ पहले

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pahad

“पहाड़ बहुत गरीब था,
सच है कवि “निशंक”,
राजशाही के अधीन,
रहता था आतंक.

कितने ही कस्ट भोगे,
फिर पहाड़ को छोड़ा,
आज समृधि आई  है,
पर्वतजनों में थोड़ा.

आपने गरीबी देखी,
लेकिन, नहीं हो अकेले,
हमने भी उस  पहाड़ में,
गरीबी के दिन हैं झेले.

हमारा बचपन भी,
उन पथरीली राहों पर बीता,
जिंदगी की जंग जारी है,
हाथ है आज भी रीता.

ये ख़ुशी की बात है,
सत्ता है आपके हाथ,
करो कायाकल्प उत्तराखंड का,
होगी बड़ी ख़ुशी की बात.

कवि जगमोहन “जिज्ञासु” के,
ये हैं मन के उदगार,
जो बीत गया वो भला,
अब खुशियाँ मिलें अपार.