चलो चले अपने गढवाल

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किसी ने मुझसे कहा
“क्यू रहते हो तुम इन गदनो और सूखी गाड़ में
क्या रखा है ऐसा तेरे इस सूखे गढवाल में”

जब लग गई बात दिल को मैंने जवाब कूछ यूँ दिया

जितना दम नही तेरे चिडियाघर के शेर की दहाड़ में

उससे ज्यादा धमाके से तो खॉंस देते है दादा गढवाल में ।।

ब्वे के हाथ की बनी रोटी
और बाबा की फटकार में ।
वो मिठास नहीं मिल सकती
हे लाटा तेरे बाज़ार में ।।

दुनिया फस चुकी हो चाहे
चिप्स चॉकलेटो के जाल में ।
पर वो स्वाद कभी नहीं मिल सकता
जो मिलता घर्या दाल में ।।

तेरे फ़िल्टर और शील बंद पानी मे, हुवा मिलावट
खेल है ।
मेरे नवले अर धारे के आगे
ये पानी फिर भी फेल है ।।

तेरे कूलर पंखे, ए सी मे.. वो हवा नहीं मिल पाती है ।
जो ताजी ठंडी कडक हवा,
मेरे डांडो से आती है ।।

बर्गर पिजा चौमिन खाले
पर वो स्वाद नहीं मिल पाता है,
जो घोट घोट कर बने हुए,
अल्लू के थिंचोडी में आता है.

तेरी तंदूरी रुमाली रोटी सब,
गिच्चे मे लपटाती है,
कडक कुरमुरी रोटी तो
चूल्हे मे ही पक पाती है

दादा दादी और चाचा चाची
तुम्हे दूर के लगते हैं,
गढवाल मे तो ये अभी भी
एक कुटुम्भ में रहते हैं

जितने तेरे केलेंडर में
शनि और रविवार हैं ।
उससे कई गुना ज्यादा तो, गढवाली तीज त्यौहार है ।।

वो भी बोला हे भाई जी मुझे भी नही रहना अब इस जी के जंजाल मे.
चल भाई मुझको भी ले चल तू अपने गढवाल मे जय देवभूमि उत्तराखण्ड!!

Jai Uttarakhand