बग्वाल
यूं तो हमारे पहाड़ से बहुत कुछ पारंपरिक त्योहार और रीती-रिवाज तथा तौर तरीके खत्म होते जा रहे हैं, लेकिन दीपावली जहां पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है, वहीं पहाड़ में भी इसका दशकों से चलन रहा है। गढ़वाल में अधिक मान्यता छोटी दीपावली यानी “बग्वाल” की रहती थी, लेकिन अब वही “बग्वाल” मनाने वाले लोग शहरों में आकर सिर्फ दीपावली को ही तरजीह देते हैं। बग्वाल उनके लिए अब गांव की दीपावली भर रह गई है।
क्या होता था बग्वाल में:-
बग्वाल में लोग घरों में स्वाली (भूड़े ), पकोड़ी, भर स्वाली(भूड़े ) आदि पकवान बनाते हैं। पालतू जानवरों खासकर गाय -बछड़ों तथा बैलों की पूजा की जाती है। उसके बाद उनके लिए तैयार किया गया भात, झंगोरा, बाड़ी (मंडवे के आटे से बनाया जाता है) और जौ के लड्डू तैयार कर सबको परात या थाली पर सजाया जाता है। फिर उनको बग्वाली के फूलों (चौलाई के फूलों) से सजाया जाता है। जानवरों के पैर धोकर धूप दिया जलाकर उनकी आरती की जाती है और टीका लगाने के बाद सींगों पर तेल लगाया जाता है। फिर परात में सजाया हुआ अन्न उनको खिलाया जाता है। यह प्रक्रिया सुबह करीब आठ से 12 बजे तक चलती है।
भैला खेलने का था चलन:-
बग्वाल के दिन गांव के लोग किसी सार्वजनिक स्थान पर एकत्रित होकर ढोल दमाऊ के साथ नाचते और भैला (लकड़ी के गिट्ठे को रस्सी से बांधकर आग लगाने के बाद घुमाया जाता है) खेलते थे, जिसमें लोग तरह-तरह के करतब दिखाते थे। आतिशबाजी भी भी इसी दिन करते थे। अब भैला का रिवाज बहुत कम गांवों में रह गया है.
क्या है मान्यता:-
-उत्तराखण्ड गढ़वाल में छोटी दीपावली को “बग्वाल” कहते हैं। इसको “यम चतुर्दशी” भी कहते हैं। इस दिन गौ पूजा से यमराज प्रसन्न होते हैं। मनुष्य की अल्पआयु में मृत्यु नहीं होती है। स्वर्ग की प्राप्ति होती है। समयानुसार नए जमाने के लोग खासकर हमारी युवा पीढ़ी अब इसको भूलने लग गए हैं।
-कहते हैं इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इसके अलावा पूरे साल एक दिन जानवरों को अन्न दिया जाता है। खरीफ की फसल की मंडाई के बाद पहला निवाला जानवरों को दिया जाता है। क्योंकि जानवर फसल तैयार करने में पूरा योगदान देते हैं। बग्वाल के ठीक 11 दिन बाद इगास मानाने का चलन है इस दिन रक्षा -बन्धन के धागों को हाथ से तोड़कर गाय की पूंछ पर बांध दिया जाता है। बग्वाल-इगास को हम लोग भूलते जा रहे हैं। इन परम्पराओं को जीवित रखने का यह प्रयास हमारी सभी पर्वतीय संस्थाओं को करना चाहिए