Poems आस August 26, 2016 Vijay Nautiyal मन्ख्या हाल देखि बार बार निरस्ये जंद सरेल लगदु की अब कुछ नि हवे सकदो यख कुछ नि होंण येयर बी बाजिंदा झणी किले जुकडिया कै कोणा बटी उठदी आसे लूँग कि कखी ना कखी कबि ण कबि कुछ ण कुछ जरुर होलु