मंड़ुआ
उत्तराखण्ड का वह अनाज जो जब तक जीवित रहा किसी भी गरीब को भूखे नही सोने देता था आज अपनी अंतिम सांस लेने को मजबूर है हमारी भौतिक सुख और विलासिता पूर्ण जीवन शैली के लिए पलायन के कारण गरीव के लिए पेट भरने का साधन था हमारे गाँव गाँव में पाया जाने वाला ” मड़ुआ ” ।
आज दुर्लभ दर्शनीय और प्रदर्शनीय का पात्र रह गया। पथरीली पहाड़ की भूमि में सुगमता से पनपने वाला ग़रीबो का भोजन अब आर्युवेदिक ओषधीय की तरह खरीदा जा रहा है जब तक लहलहरता था इसकी कीमत न लगी आज इस अनमोल पौधे के लिए हमारी तड़प दिखती है कितनी सच्ची और कितनी बनावटी इस का कारक कारण और करता हम ही है फैसला भी हमे ही करना होगा ।पलायन हमने ही किया खेत खलिहान हमारे ही बंजर हो गए और बेरोजगारी साधन जुटाने में हमारी ही सरकार फेल होती रही हम प्रवासी बन सिर्फ आँसू बहाते ही रह गए।सरकार किसी की भी रही बस अपनों के लिए बनी अपनों का भला करने में रही और अपने भाई भतीजावाद से कभी आगे ही नही बढ़ पाई ।जो अमीर है वे अमीर और जो गरीब है वे भूख से तड़पते रहे कभी गरीबो का बनने वाला निवाला आज जमी से रुखसत से होते चले गए।
we should try to stop Palayan from Uttarakhand..
Nice post… great Suryen