आ गई गढ चेतना
जब भी सुने,
दीन और दुखी की वेदना,
है हमारी,
उनके लिए संवेदना,
ऊर्जा फिर से हम भरेगे,
है कसम,
नव भोर के संग,
आ गई गढ चेतना !
डंक से थे,
हम पलायन के डसे,
कट चुकी थी गढ भूमि से,
अब तक जो नसे,
नव शक्ति बन,
राक्षस पलायन है भेदना,
नव भोर के संग,
आ गई गढ चेतना !
मंच ऐ है आपका,
आओ यहॉ तुम,
इक चक्षु से देखो यहॉ से,
तुम जहॉ तुम,
लाओ स्वयं मे,
और सब मे चेतना ,
नव भोर के संग,
आ गई गढ चेतना,
नव भोर के संग,
भा गई गढ चेतना ,
नव भोर के संग ,
आ गई गढ चेतना… !
कवि …सुरेन्द्र सिह रावत

गढ़वासियों को जगाने, आ गई गढ़ चेतना,
सभी दिलों की धड़कन, दूर करे हर अड़चन,
यह है अपनी प्रेरणा, आ गई गढ़ चेतना ।।
Vah Vah Surender Ji kya baat.. bahut sundar kavita..